मायूस
ना हो मायूस ए रही तू दिल के नेक इरादे न बदल
तेरी मेहनत तेरी कोशिश तेरी तकदीर बदल सकती है
ना हो मायूस ए रही तू दिल के नेक इरादे न बदल
तेरी मेहनत तेरी कोशिश तेरी तकदीर बदल सकती है
Posted by Rafiquzzama at 5:10 AM 0 comments
किताब का हर लफ्ज़ तेरा अक्स लिए बैठा है
तेरा मासूम सा चेहरा मुझे पढने नही देता
Posted by Rafiquzzama at 5:05 AM 0 comments
सर्द रातों की महकते हुए साँसों में
जब किसी फूल को चुमोगी तो याद आऊंगा
आज तो महफिले यारां हो मगरूर बहुत
जब टूट के बिख्रोगी तो याद आऊंगा
अब तलक तुम्हारे अश्क अपने होंठों से चुरा लेता था
जब हाथ से उन्हें खुद पोचोंगे तो याद आऊंगा
शाल ओधयेगा कौन देसम्बेर में तुम्हें
जब बारिश में भिगोगी तो याद आऊंगा
कौन लेकर जाएगा तुम्हे शहर की गलियों में
घर से निकलोगी तो बहुत याद आऊंगा
रफ़ीक तुम मुज्से नाराज़ ही सही
लेकिन आंखों को बंद करोगी तो याद आऊंगा
Posted by Rafiquzzama at 11:35 PM 0 comments
मेरी सुबह तेरी मुरीद है मेरी शाम तेरे ही नाम से
तुम्हारे दर छोड़ दूँगा मैं ये ख़याल दिल से निकल दे
Posted by Rafiquzzama at 7:51 AM 0 comments
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैंने ने देखा है चांद भी किसी शाख -ए -गुल पे झुका हुआ
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक था दिल की किताब का
कही आंसुओं से मिटा हुआ कहीं आंसुओं से लिखा हुआ
Posted by Rafiquzzama at 7:36 AM 0 comments
मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुकद्दर में चलना था चलते रहे
कोई फूल सा हाथ कान्धे पे था
मेरे पाँव शोलो पे चलते रहे
मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उसकी आंखो में जलते रहे
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे
सूना है उन्हें हवा लग गई
हवाओं के जो रुख बदलते रहे
लिपट के चरागों से वो सो गए
जो फूलो पे करवट बदलते रहे
Posted by Rafiquzzama at 7:14 AM 0 comments
अगर तलाश करूगा तो कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हे ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें कहा से लाएगा
Posted by Rafiquzzama at 7:49 AM 0 comments
क्यों प्यार उस पर ही आता है ,
जो मिल कर भी ना मिल पता है ।
कैसे यह उससे बताएं हम ,
तुझ बिन रह ना पाएं हम ।
क्यों बार बार वोह सताता है -
खुयाँबों मैं आकर रुलाता है ?
भूलना उस को चाहें हम ,
पर किस तरह भुलाएँ हम ?
वोह मॅन मैं हर दम रहता है ,
धर्कन कि तरह धर्क्ता है ।
हैं इसी एहसास से ज़िंदा है हम ,
हैं एक -दूजे के दिल ओ जान हम ।
एक दूजे के दिल मैं रहते हैं -
क्या प्यार इसी को कहते हैं ?
कितने सजये थे सपने प्यार के ........
क्या थी येः जिन्दगी हाय एक रात के
रफ़ीक तुम तो कहते थे मर ही जायेंगे
तुम्हारे बिन केसे जीं पाएंगे
Posted by Rafiquzzama at 7:08 AM 0 comments
चाहत
एक ही बात को हर शेर मे लिखना चाहा ,
आज तक कह ना सका जो वही कहना चाहा !
जो आंख बंद हुयी दिल मे तुम्हे ही देखा ,
खुली निगाह तो तुमको ही देखना चाहा !
जिन्दगी कटती रही सिर्फ तेरी चाहत मे ,
तुम्हारे साथ साथ हर घड़ी रहना चाहा !
उंगलियां झिझक के शर्म के रूक गयी हरदम ,
यूं कई बार मैंने ख़त तुम्हे लिखना चाहा !
तेरी खुशबू से महकती रही यादें मेरी ,
तेरे सीने मे तेरे दिल सा धड़कन चाहा !
तेरे ख्यालों मे यूं खोया रह रोजो -शब् ,
मैं खुद को भूलता गया तुम्हे इतना चाहा !
दरो दरिचे खुले रखे तुम्हरी खातिर ,
तुम्हारे हाथों बडे शोक से लूटना चाहा !
तेरी राहों के खर चुनता रह पलकों से ,
तेरे लबों पे हसी बन के थिरकना चाहा !!
तेरी मुस्कराहट ने तो हमे लूट लिया रफ़ीक
हमने तो तो तेरी मोहब्बत खुद लूटना चाहा
Posted by Rafiquzzama at 7:37 AM 0 comments
चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दरद दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,
मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।
चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,
एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दरिया हुँ , बेहता ही रहा ,
तूफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं
रफ़ीक तुम जानते ही नही
किसी से बहाने करने का हुनर मुझमे नही
Posted by Rafiquzzama at 3:30 AM 0 comments
क्या कोई जनता है जिन्दगी क्या होती है। ज़िन्दगी सिर्फ जीने का नाम नही है। इस में हर तरफ परेशानी होती है तो कहीँ प्यार होता है तो कही ख़ुशी होती है। अगर तुम अपने ज़िन्दगी को सही से जीं लेंगे तो एक बरी कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
Posted by Rafiquzzama at 12:12 AM 0 comments