Thursday, July 26, 2007

याद

सर्द रातों की महकते हुए साँसों में
जब किसी फूल को चुमोगी तो याद आऊंगा
आज तो महफिले यारां हो मगरूर बहुत
जब टूट के बिख्रोगी तो याद आऊंगा
अब तलक तुम्हारे अश्क अपने होंठों से चुरा लेता था
जब हाथ से उन्हें खुद पोचोंगे तो याद आऊंगा
शाल ओधयेगा कौन देसम्बेर में तुम्हें
जब बारिश में भिगोगी तो याद आऊंगा
कौन लेकर जाएगा तुम्हे शहर की गलियों में
घर से निकलोगी तो बहुत याद आऊंगा
रफ़ीक तुम मुज्से नाराज़ ही सही
लेकिन आंखों को बंद करोगी तो याद आऊंगा

No comments: