Sunday, July 22, 2007

मुसाफिर के रास्ते

मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुकद्दर में चलना था चलते रहे
कोई फूल सा हाथ कान्धे पे था
मेरे पाँव शोलो पे चलते रहे
मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उसकी आंखो में जलते रहे
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे
सूना है उन्हें हवा लग गई
हवाओं के जो रुख बदलते रहे
लिपट के चरागों से वो सो गए
जो फूलो पे करवट बदलते रहे

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