क्यों प्यार उस पर ही आता है ,
जो मिल कर भी ना मिल पता है ।
कैसे यह उससे बताएं हम ,
तुझ बिन रह ना पाएं हम ।
क्यों बार बार वोह सताता है -
खुयाँबों मैं आकर रुलाता है ?
भूलना उस को चाहें हम ,
पर किस तरह भुलाएँ हम ?
वोह मॅन मैं हर दम रहता है ,
धर्कन कि तरह धर्क्ता है ।
हैं इसी एहसास से ज़िंदा है हम ,
हैं एक -दूजे के दिल ओ जान हम ।
एक दूजे के दिल मैं रहते हैं -
क्या प्यार इसी को कहते हैं ?
कितने सजये थे सपने प्यार के ........
क्या थी येः जिन्दगी हाय एक रात के
रफ़ीक तुम तो कहते थे मर ही जायेंगे
तुम्हारे बिन केसे जीं पाएंगे
Friday, July 20, 2007
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