Saturday, July 14, 2007

चाहत
एक ही बात को हर शेर मे लिखना चाहा ,
आज तक कह ना सका जो वही कहना चाहा !
जो आंख बंद हुयी दिल मे तुम्हे ही देखा ,
खुली निगाह तो तुमको ही देखना चाहा !
जिन्दगी कटती रही सिर्फ तेरी चाहत मे ,
तुम्हारे साथ साथ हर घड़ी रहना चाहा !
उंगलियां झिझक के शर्म के रूक गयी हरदम ,
यूं कई बार मैंने ख़त तुम्हे लिखना चाहा !
तेरी खुशबू से महकती रही यादें मेरी ,
तेरे सीने मे तेरे दिल सा धड़कन चाहा !
तेरे ख्यालों मे यूं खोया रह रोजो -शब् ,
मैं खुद को भूलता गया तुम्हे इतना चाहा !
दरो दरिचे खुले रखे तुम्हरी खातिर ,
तुम्हारे हाथों बडे शोक से लूटना चाहा !
तेरी राहों के खर चुनता रह पलकों से ,
तेरे लबों पे हसी बन के थिरकना चाहा !!
तेरी मुस्कराहट ने तो हमे लूट लिया रफ़ीक
हमने तो तो तेरी मोहब्बत खुद लूटना चाहा

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