Tuesday, May 1, 2007

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते ,
मेरी तनहाई पर मुस्कुराते रहे
बहूत देर तक यूँही चलता रह ,
तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रह ज़हर पिटे रहे ,
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे ,
जिन्दगी भी हमे अज्मती रही ,
और हम भी उसे आजमाते रहे
जाम जब भी कोई ज़ेहन -ओ -दिल पेर लगा ,
जिन्दगी कि तरफ एक दरीचा खुला ,
हम भी किसी साज़ के तार हैं ,
चोट खाते रहे गुन -गुनाते रहे
कल कुछ ऐसा हुआ में बहुत थक गया ,

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