अगले साल जब यही वक़्त आ रहा होगा
जानता है कोन किस जगह होगा
तू मेरे सामने बेठी है और मैं होंगा
आते लम्हों मैं जीना भी एक सज़ा होगा
हर पल दुवां दुवां होन गय यही दमकता हुआ दिन भुझा भुझा होगा
लहू रुलायाय गा वोह धुप छाओ का मंज़र नज़र उतोऊ गा
जिस सिम्त झुत्पुता होगा यही जगह जहाँ आज हम मिल बैठे है
इसी जगह पाय खुदा जाने कल किया होगा
बिचार्ने वाले तुझे देख सोचता हूँ
तू फिर मिलेगा तो कितना बदल चुका होगा
Friday, May 11, 2007
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