क्या लिखूँकुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँवो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँमै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँमै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँमीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँबचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँसागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँवो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँसावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँगीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰कुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
Sunday, May 13, 2007
Friday, May 11, 2007
अगले साल जब यही वक़्त आ रहा होगा
जानता है कोन किस जगह होगा
तू मेरे सामने बेठी है और मैं होंगा
आते लम्हों मैं जीना भी एक सज़ा होगा
हर पल दुवां दुवां होन गय यही दमकता हुआ दिन भुझा भुझा होगा
लहू रुलायाय गा वोह धुप छाओ का मंज़र नज़र उतोऊ गा
जिस सिम्त झुत्पुता होगा यही जगह जहाँ आज हम मिल बैठे है
इसी जगह पाय खुदा जाने कल किया होगा
बिचार्ने वाले तुझे देख सोचता हूँ
तू फिर मिलेगा तो कितना बदल चुका होगा
Posted by Rafiquzzama at 8:29 AM 0 comments
Monday, May 7, 2007
माना तेरी निगाहो मैं कुछ भी नही हम
यह उनसे जाकर पूछ जिसको हासिल नही है हम
Posted by Rafiquzzama at 12:22 AM 0 comments
Tuesday, May 1, 2007
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते ,
मेरी तनहाई पर मुस्कुराते रहे
बहूत देर तक यूँही चलता रह ,
तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रह ज़हर पिटे रहे ,
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे ,
जिन्दगी भी हमे अज्मती रही ,
और हम भी उसे आजमाते रहे
जाम जब भी कोई ज़ेहन -ओ -दिल पेर लगा ,
जिन्दगी कि तरफ एक दरीचा खुला ,
हम भी किसी साज़ के तार हैं ,
चोट खाते रहे गुन -गुनाते रहे
कल कुछ ऐसा हुआ में बहुत थक गया ,
Posted by Rafiquzzama at 11:58 PM 0 comments